
प्रदुषण से हम सब परेशां है और हमारी संस्कृति समाप्त होती जा रही है जैसा की कहा गया है की संस्कृति आदान प्रदान से बढती है जबकि कुपमंदुक की तरह जीनेवाले समाज की संस्कृति सीमित और संकीर्ण होती है अतः आदान प्रदान से ही संस्कृति का महत्व बढ़ता है हम स्वर्ग की बात क्या करे ? हम व्रिक्षारोपन करके यहाँ ही स्वर्ग क्यूँ न बनाये ? महान सम्राट अशोक ने कहा---' रास्ते पर मैंने वट-वृक्ष रोप दिए हैं जिससे मानव तथा पशुओं को छाया मिल सकती हैआज प्रभुत्व संपन्न भारत ने इस राज महर्षि के राजचिन्ह ले लिए हैं २३ सौ वर्ष पूर्व उन्होंने देश में ऐसी एकता स्थापित की थी जो सराहनीय है परन्तु क्या आज हम सिर्फ उनके राजचिन्ह लेना ही अपना फर्ज मानते हैअतः अगर आप इस दिशा में लाखो करोरो श्रोता के सुनने वाले विविध भारती पर अपनी राय रखेंगे तो हम इस सन्देश को सुनकर निश्चय ही ऐसे प्रबंध करेंगे जिससे भारत के सभी प्रजाजन कह सके की हमने जो रास्ते पर वृक्ष लगाये थे, वे मानवों और पशुओं को छाया देते है राष्ट्रिय जाग्रति तभी ताकत पति है, तभी कारगर होती है, तब उसके पीछे संस्कृति की जाग्रति हो और यह तो आप जानते ही हैं की किसी भी संस्कृति की जान उसके साहित्य में, यानि उसकी भाषा में है इसी बात को हम यों कह सकते हैं की बिना संस्कृति के राष्ट्र नहीं और बिना भाषा के संस्कृति नहीं,
जय हिंद , जय भारत
अवधेश झा
हम व्रिक्षारोपन करके यहाँ ही स्वर्ग क्यूँ न बनाये? - समसामयिक सोच -पर्यावरण साफ़ और सुरक्षित रखने की सख्त जरुरत है - शुभकामनाएं
ReplyDeleteसमसामयिक सोच।
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं.....बधाई स्वीकार करें.....हमारे ब्लॉग पर आकर अपने विचार प्रस्तुत करें.....|
ReplyDeletesaarthak post
ReplyDeletesundar chintan
aabhaar